सम्प्रेषण के घटक या कारक
(COMPONENTS OR FACTORS OF
COMMUNICATION)
दोस्तों आज हम बात करेंगे सम्प्रेषण के घटक या कारक के बारे में विस्तार से 👍
1. प्रेषक (Sender or Communicator)
प्रेषक एवं माध्यम की सफलता का मूलाधार संदेश होता है। संदेश को सामाजिक विषमता, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, भाषावाद एवं अन्य बुराइयों से आच्छादित नहीं होना चाहिए बल्कि इसके स्थान पर लोगों में प्रेम, सहानुभूति, सहयोग, सह-अस्तित्व, शान्ति एवं आपसी सौहार्द्र को बढ़ाने वाला होना चाहिए।
शिक्षण सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने में प्रेषक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। यदि सम्प्रेषण भावी शिक्षकों को सही दिशा-निर्देश देने से सम्बन्धित है तो प्रेषक को इस बात का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए कि वह प्रशिक्षुओं को इस प्रकार संप्रेषित करें, जिससे लाभान्वित होकर वह शिक्षक बनने के उपरान्त कक्षा में बच्चों को किस प्रकार उनकी रुचियों आदतों, अभिवृत्तियों, आकांक्षाओं वातावरण एवं सामाजिक परिवेश का ध्यान रखते हुए पढ़ायेंगे इसकी जानकारी हो सके।
आज के बाल केन्द्रित शिक्षण में प्रमुख तत्व छात्र स्वयं है। अतः छात्र/छात्राओं की आयु, मूल आकांक्षाएं, बौद्धिक स्तर तथा आदते या मनोभावनाएँ शिक्षण-सम्प्रेषण को प्रभावित करते हैं। इसलिए सम्प्रेषण के समय छात्रहित को विशेषतः ध्यान में रखना चाहिए। प्रेषक को शिक्षण एवं विषय से सम्बन्धित शिक्षण के उद्देश्यों की जानकारी भली प्रकार होनी चाहिए ताकि अपेक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु वह पर्याप्त साधन एवं सुविधाएं शिक्षण हेतु जुटा सके।
प्रेषक को अपना संदेश भली भाँति प्रेषित करने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए
• छात्रों का बौद्धिक स्तर
• उद्देश्य की जानकारी
• स्वयं का व्यक्तित्व
• विषयवस्तु का चयन
• पाठ्य योजना का निर्माण
• उचित शिक्षण विधि एवं सहायक सामग्री का प्रयोग
• वैयक्तिक विभिन्नताओं का ध्यान
• कक्षा का वातावरण
• बालक का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य
• समवाय या विषयों के सह-सम्बन्ध पर आधारित शिक्षण सम्प्रेषण
• अभिप्रेरणा
• निष्पक्ष भाव
2. संदेश (Message)
संदेश से आशय पाठ्यवस्तु से है। प्रेषक ग्राही को जो कुछ भी सिखाना चाहता है इस कार्य अपना जो अनुभव व ज्ञान वह शिक्षण के माध्यम से प्रेषित करता है उसे संदेश कहते हैं। यदि एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचना या जानकारी दी जाती है और दूसरा व्यक्ति समझ लेता है तो यह सम्प्रेषण कहलाता है। सम्प्रेषण पूरा होने के लिए सम्प्राप्ति भी आवश्यक है अथवा किसी के द्वारा कही गई बात को उसी तरह समझ लेना सम्प्रेषण कहलाता है। उदाहरणार्थ- प्रेषक स्कूल, स्टेशन, स्थान आदि शब्दों को शुद्ध बोलना एवं लिखना सिखाना चाहता है। वह पहले स्वयं शुद्ध उच्चारण करके सिखायेगा। यदि फिर भी ग्राही ने उसे सही तरीके से नहीं सीखा है वह स्कूल को इस्कूल, सकल स्टेशन को इस्टेशन टेशन और स्थान को इस्थान या अस्थान बोलता या लिखता है तो प्रेषक उसे श्यामपट्ट पर या चार्ट व चार्ट पट्टिका पर लिख कर भली-भाँति स्पष्ट करके समझाएँ ।
3. माध्यम (Media)
माध्यम प्रेषक और प्रापक के बीच मेल कराते हैं। यह दोनों के मध्य मध्यस्थता का कार्य करता है। वर्तमान समय में अनेकों सम्प्रेषण माध्यम प्रचलित है, जैसे- रेडियो, टेलीविजन, ओवर हेड, प्रोजेक्टर, टेलीफोन, बी०सी०आर० इत्यादि प्रेषक अपनी आवश्यकता, उपयोगिता को देखकर रखकर अपने संदेश को सम्प्रेषित करने के लिए किसी एक माध्यम या सभी माध्यमों का सम्मिलित रूप से उपयोग कर सकता है। माध्यम सर्वसुलभ सस्ता लोकप्रिय, व्यावहारिक क्रिया विधि को मानने वाला होना चाहिए।
4. ग्राही (Achiever)
ग्राही अर्थात् ग्रहण करने वाला प्राप्त करने वाला या सीखने वाला सम्प्रेषण के द्वारा दिये जाने वाले ज्ञान को ग्रहण करने वाला ग्राही कहलाता है। सम्प्रेषण के तीन प्रमुख घटक है-सम्प्रेषण, संदेश, ग्राही तीनों का ही आपस में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। संप्रेषक -संदेश ग्राही प्रतिपुष्टि। इसका तात्पर्य है कि संप्रेषक अर्थात् शिक्षक ने विद्यार्थियों को (ग्राही को) जिस किसी भी विषय की महत्वपूर्ण बातों की जानकारी दी उसको ग्राही (विद्यार्थी) ने कितना सीखा, उसे कितनी उपलब्धि हुई। संप्रेषक बीच-बीच में विद्यार्थियों की सहभागिता से जान लेता है कि वह सीख च समझ रहा है कि नहीं। यदि वह सामूहिक रूप से कम सीख रहा है या उसकी सीखने की उपलब्धि कम हो रही है तब ऐसी स्थिति में संप्रेषक व्यक्तिगत रूप से ध्यान देकर उसकी इस कमी को दूर करता है बालक को कौन-सा विषय किस विधि से पढ़ाया जाना चाहिए, उसकी प्रकृति के अनुसार शिक्षा देने की व्यवस्था करता है। ग्राही को अन्य नामों, जैसे प्रापक, प्राप्तकर्ता, ग्रहणकर्ता, विषयी इत्यादि नामों से भी सम्बोधित किया। जाता है।
5. प्रतिपुष्टि (Feedback) जिस प्रकार अधिगम की प्रक्रिया में सीखने वाला व्यक्ति को सीखने की ओर उत्सुक करने के लिए बीच-बीच में पुनर्बलन या पृष्ठ पोषण दिया जाता है, जिससे सीखने में तारतम्यता, क्रमबद्धता एवं ध्यान की एकाग्रता बनी रहे, उसी प्रकार सम्प्रेषण की प्रक्रिया में भी प्रापक को समय-समय पर प्रतिपुष्टि देना आवश्यक होता है जिससे वह संदेश के प्रति जागरूक रहता है। प्रतिपुष्टि से प्रापक में नये जोश का संचार होता है और प्राप्त संदेश को वह करके देखने एवं उनकी व्यावहारिकता की ओर वह प्रेरित होता है। उसकी ज्ञानात्मक एवं भावात्मक विचार धाराएँ क्रियात्मकता की ओर अग्रसर होती हैं।
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